kaise bataye

कैसे कहुँ तुम्हे... 


कैसे कहुँ तुम्हे... 
ये अल्फाज लफ़्ज़ों से बया नहीं होते..  
और ये एहसास खुद से दूर नहीं होते... 
कैसे कहु तुम्हे...

कैसे बया करू...
ये हाल-ए -दिल तुम्हे...
अब तो रातें कट जाती हो याद में तेरे...
कैसे बया करू...

कैसे होगी गुफ्तगू...
अब लब्ज़ अधूरे, होठों पे ठहर जाते है...
तब नजरों की जुबाँ सब बया कर देती है तुम्हे...
कैसे होगी गुफ्तगू...

कैसे लिखू तुज़पे...
तू खुदही एक दास्तान है...
जो हर किसीके साथ ना हो वो खूबसूरत हादसा है...
कैसे लिखू तुज़पे...




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